अनकही मोहब्बत - Beginning in Hindi Fiction Stories by Kabir books and stories PDF | अनकही मोहब्बत - 1

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अनकही मोहब्बत - 1

कक्षा 9वीं का लड़का आरव अपने मोहल्ले और परिवार के लिए एक सीधा-सादा बच्चा था। माँ उसे हमेशा कहतीं,
"बेटा, पढ़ाई में थोड़ा मन लगाया करो।"
पापा अक्सर उसकी चुप्पी पर हँसते और कहते,
"ये लड़का बड़ा होकर लेखक बनेगा शायद, इतना लिखता ही रहता है।"

असल में, आरव लिखता भी था… लेकिन सिर्फ एक नाम के लिए — अनाया।


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स्कूल की ज़िंदगी

आरव स्कूल में सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठता था। उसकी एक छोटी-सी टोली थी — मयंक और सौरभ जैसे दोस्त, जो पढ़ाई में उससे अलग थे लेकिन उसकी हँसी के साथी थे।
टिफिन टाइम में वे सब मिलकर कैंटीन से समोसा खाते, क्रिकेट के स्कोर पर बहस करते और टीचरों की नकल करके हँसते।

लेकिन बीच-बीच में आरव की नज़रें हमेशा अनाया पर चली जातीं।
वह अक्सर देखता कि अनाया अपनी सहेलियों के साथ आगे की बेंच पर बैठकर सबको पढ़ाई समझाती है। उसकी कॉपियों पर साफ-सुथरी लिखावट, उसके चेहरे पर आत्मविश्वास और उसकी मासूम हँसी — ये सब आरव के लिए जैसे किसी सपने से कम नहीं था।

एक बार मयंक ने उससे मज़ाक में कहा था,
"तू तो बस उसे देखता ही रहता है, कभी जाकर बात भी कर ले।"
आरव हल्की हँसी के साथ बोला,
"कुछ बातें कहने से बेहतर है… दिल में ही रह जाएँ।"


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परिवार की मासूमियत

आरव का परिवार साधारण था। माँ उसके लिए रोज़ टिफ़िन में पराठे बनातीं, और बहन रिद्धि अक्सर उसकी कॉपी पलटकर उसके बनाए चित्र देखती।
"भैया, ये लड़की कौन है? बार-बार उसका नाम क्यों लिखते हो?"
आरव झेंपकर पन्ने छीन लेता और कहता,
"तुझे समझ नहीं आएगा।"

वह अपनी बहन से भी अपने राज़ छिपाता, क्योंकि वह जानता था कि उसका प्यार एकतरफ़ा है और शायद कभी कह भी नहीं पाएगा।


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वो काली शाम

9वीं की सर्दियों की एक शाम थी। आरव ट्यूशन से घर लौट रहा था। दोस्तों से विदा लेकर उसने गली में कदम रखा ही था कि एक तेज़ ट्रक ने उसकी मासूम ज़िंदगी छीन ली।
कुछ ही पलों में सब ख़त्म हो गया।

स्कूल में अगले दिन ख़ामोशी थी। सब हैरान थे। टीचरों ने दुख जताया।
अनाया ने भी बस इतना सोचा, “बेचारा… चुपचाप लड़का था।”
और कुछ दिनों में ज़िंदगी सबके लिए सामान्य हो गई।


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सालों बाद…

समय बीत गया।
अनाया कॉलेज में पहुँच गई। पढ़ाई, करियर और नई दोस्तियाँ उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन गईं।
एक दिन स्कूल री-यूनियन पर वह वापस उसी क्लासरूम में पहुँची जहाँ कभी 9वीं पढ़ी थी।

पुरानी अलमारियाँ साफ़ करते हुए उसे एक कॉपी मिली।
धूल से ढकी उस कॉपी को खोलते ही उसके हाथ काँप गए।
पन्नों में कविताएँ थीं, छोटे-छोटे ख़त थे, और हर जगह उसका नाम — अनाया।

आख़िरी पन्ने पर लिखा था —

"अनाया, शायद मैं कभी तुझसे कह नहीं पाऊँ…
पर तू ही मेरी सबसे बड़ी ख़ुशी है।
अगर कभी तू ये पढ़ेगी, तो जान लेना कि एक लड़का तुझे पूरे दिल से चाहता था।"

अनाया की आँखों से आँसू बह निकले।
उसे एहसास हुआ कि जिस लड़के को उसने कभी नोटिस भी नहीं किया, वह चुपचाप उससे मोहब्बत करता रहा।

उस रात, आसमान की ओर देखते हुए उसने पहली बार उसका नाम लिया —
"आरव…"

लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।
वह सुन नहीं सकता था।
और उसकी मोहब्बत हमेशा अधूरी रह गई।


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अंतिम पंक्तियाँ

कुछ प्यार ऐसे होते हैं जो ज़िंदगी से पहले ही मर जाते हैं…
पर उनकी यादें, उनके लिखे शब्द, और उनके अधूरे सपने हमेशा ज़िंदा रहते हैं।